Udhav prasang – Part-1

 

                    उद्धव प्रसंग 

 

जगन्नाथ दास रत्नाकर-

 प्रस्तुत पद्यांश उद्धव शतक से udhav Prasang नामक शीर्षक द्वारा हमारी पाठ्य पुस्तक में लिखा गया है। महाकवि रत्नाकर जी का जन्म 1966 ईस्वी में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पुरुषोत्तम दास था । जो भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के परम मित्र थे । उनकी मृत्यु हरिद्वार में 21 जून 1932 ई को हुआ था । इनकी प्रमुख रचनाएं उद्धव शतक, गंगा वातावरण ,श्रृंगार लहरी, गंगा लहरी, विष्णु लहरी थी । इनकी भाषा शैली प्रौढ़ साहित्य , ब्रजभाषा ।उनकी शैली – चित्रण, अलंकारिक तथा चमत्कारिक शैली थी।

 

Uddhav prasang

यह उद्धव प्रसंग जगन्नाथ दास रत्नाकर विरचित उद्धव – शतक से लिया गया है। जो up board class 12 Hindi के syllabus में उद्धव प्रसंग नामक शीर्षक के अन्तर्गत लिखा गया है।

भेजे मनभावन के ऊधव के आवन की

सुधि ब्रज-गाँवनि मैं पावन जबै लगीं।

कहै ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि

दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं।।

उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै

पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं।

हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकों लिख्यौ है कहा,

हमकों लिख्यौ है कहा कहन सबै लगीं।। 1 ।।

 

व्याख्या

प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भगवान श्री कृष्ण द्वारा मथुरा से भेजे गए उद्धव और ब्रज की गोपियों के संवाद के रूप में ज्ञान और योग के ऊपर भक्ति की विजय दिखाने के लिए उद्धव प्रसंग की रचना की और कवि कहते हैं- कि मनभावन श्री कृष्ण ने उद्धव को गोपियों के पास भेजा है या ब्रज में उद्धव जी आ रहे हैं ऐसा समाचार पाकर ब्रज रमणीय या ब्रज की गोपियों उद्धव के आने का समाचार सुनकर ग्वालिनीयां समूह में दौड़ दौड़ कर नंद बाबा के आंगन में इकट्ठा होने लगी और गोपियां अपने कमल रूपी पंजों पर उचक -उचक कर पत्र को देख-देख के पत्र को छाती से लगाने लगी और गोपियों कह रही है कि श्री कृष्ण ने हमारे लिए क्या लिखा है श्री कृष्ण ने हमारे लिए क्या लिखा है श्री कृष्ण ने हमारे लिए क्या लिखा है ऐसी सारी गोपियां एक दूसरे सखियों से कहने लगी।

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चाहत जौ स्वबस सँजोग स्याम-सुन्दर कौ

जोग के प्रयोग मैं हियौ तौ बिलस्यो रहै।

कहै ‘रतनाकर’ सु-अंतर-मुखी है ध्यान

मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहे।।

ऐसें करौं लीन आत्मा कौ परमात्मा मैं

जामैं जड़़-चेतन-बिलास बिकस्यौ रहै।

मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि

सो तो सब अंतर – निरंतर बस्यौ रहै।।2।।

व्याख्या

उपर्युक्त गद्यांश में उद्धव जी गोपियों की बेचैनी को देखकर गोपियों से कहते हैं की है गोपिया यदि तुम अपने श्याम को अपने बस में करना चाहती हो तो तुम्हें योग साधना में ही अपने मन को लगाना चाहिए रत्नाकर जी कहते हैं कि यह जो योग का मार्ग है यह अंतर्मुखी मार्ग है अपने इष्ट को अपने हृदय में ध्यान लगाना चाहिए देखने का प्रयास करना चाहिए। जैसे एक योगी अपने कमल रूपी हृदय में ब्रह्म को जलती हुई ज्योति के रूप में देखा है। उद्धव गोपियों से कहते हैं कि अपनी आत्मा और परमात्मा को एक दूसरे में ऐसे लीन कर दो की जड़ और चेतन में कोई अंतर न रह पाए। जिस प्रेम के कारण गोपियां आप सभी पीड़ित हैं उसे योग मार्ग के द्वारा वह मनभावन आपके हृदय में हमेशा निवास करेंगे अर्थात् आप अपने उस प्रेमी कृष्ण से कभी भी दूर नहीं रहेंगे, और प्रेम की पीड़ा नहीं होगी।

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सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान

कोउ थहरानी, कोऊ थानहिं थिरानि हैं।

कहै ‘रतनाकर’ रिसानी, बररानी कोऊ

कोऊ बिलखानी, बिकलानी, बिथकानी हैं।।

कोऊ सेद-सानि, कोऊ भरि दृग-पानी रहीं

कोऊ घूमि – घूमि परीं भूमि मुरझानी हैं

कोऊ स्याम-स्याम कै बहकि बिललानी कोऊ

कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी हैं ।।3।।

व्याख्या

जगन्नाथ दास रत्नाकर जी कहते हैं उद्धव के इस प्रकार की अकह कहानी (अर्थात जो कहानी योग्य नहीं है) उसे सुनकर कुछ गोपियां ठहर गई, कुछ बाररा(गुस्सा)गई, कुछ गोपिया वहीं पर स्थिर हो गई, कुछ नाराज गई, कुछ रोने लगी, कुछ व्याकुल हो गई, कुछ अचेत होकर वहीं पर गिर गई, कुछ सखियां पसीने से युक्त हो गई, कुछ सखियों के आंखों में पानी आ गया, कुछ सखियां चक्कर खाकर भूमि पर गिरने लगी, कुछ सखियां श्री कृष्ण का नाम ले लेकर चिल्लाने लगी, और कुछ सखियां अपनी कलेजे पर हाथ रख के एकदम सहम गई-डर गई।


कान्ह-दूत कधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप

धारे प्रन फेरन कौ मति ब्रजबारी की।

कहै ‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना

ठानत अनीति आनि रीति लै अनारी की।।

मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, क‌ह्यौ जो तुम

तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की।

जैहै बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि की

बूँदता बिलैहै बूँद बिबस बिचारी की ।।4।।

व्याख्या

रत्नाकर जी बता रहे है – गोपिया उद्धव से कहती है की हे उद्धव आप कृष्ण के दूत नहीं लगते ऐसा लगता है आप ब्रह्म के दूत हों और आप हमारी मति को फेरने आए हो । आपको यहां आकर कृष्ण की चर्चा करनी चाहिए थी और आप यहां आकर ब्रह्म की चर्चा कर रहे हो। गोपिया उद्धव से कहती है कि- हे उद्धव आप प्रीत के रीति को नहीं जानते , हम ब्रज गोपिया श्री कृष्ण को चाहते हैं और उन्हीं के बारे में सुनना पसंद करती हैं और आप यहां आकर ब्रह्म के बारे में बता रहे हैं । इसीलिए आप पक्के अनाड़ी हैं । चलो एक क्षण के लिए हमने मान लिया कि वह कान्हा और आपका ब्रह्म एक है फिर भी उसे कृष्ण के अलावा हमें अन्य कोई भाता नहीं है। गोपिया उद्धव को समझाते हुए कहती है कि है उद्धव जैसे समुद्र में यदि जल मिले तो समुद्र के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन जब वही बूंद समुद्र में मिले तो बूंद का अस्तित्व समाप्त हो जाता है । अर्थात् हे उद्धव तुम्हारा ब्रह्म समुद्र के समान है और हम गोपियां बूंद के समान है।

Udhav Prasang की व्याख्या कैसी लगी। कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। शेष अगले भाग में …….

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