Rigved – ऋग्वेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

 

ॠग्वेद संहिता का परिचय

ऋग्वेद( Rigved ) शब्द में ॠच् या ॠक् का अर्थ है – स्तुति परक मंत्र। “ॠच्यते स्तुयतेऽनया इति ॠक्।” जिन मित्रों के द्वारा देवों की स्तुति की जाती है उन्हें ॠचा कहते हैं । वैदिक साहित्य का सबसे प्राचीन और प्रथम ग्रंथ का नाम ऋग्वेद है । ऋग्वेद में अनेकों देवों की स्तुति वाले मंत्र निहित है इसलिए इसे Rigved कहते हैं। भाषा शैली व्याकरण एवं मन्त्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ॠग्वेद किसी एक समय की रचना नहीं है , किंतु विभिन्न काल में विभिन्न ॠषियों द्वारा रचित रचनाओं का संग्रह ग्रंथ है ऐसे ऋचाओं के संग्रह के कारण ही इसे ऋग्वेद संहिता कहते हैं संहिता का साधारण अर्थ है संकलन या संग्रह।

ऋग्वेद

ऋग्वेद का महत्व –

                      ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे प्राचीन वेद है और यह चारों वेदों में सबसे विशालकाय ग्रंथ है इसमें अधिकांश देव इंद्र अग्नि विष्णु मारुत सम आदि प्रकृति तत्वों के प्रतिनिधि है। ऋग्वेद के आचार्य पैल है, जो महर्षि व्यास के शिष्य थे। वैदिक साहित्य के अनुसार यज्ञ में चार ऋत्विक होते हैं – होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा । ऋग्वेद का ॠत्विक होता माना जाता है। इसलिए ऋग्वेद में होता ऋचाओं का पाठ करता है इसीलिए ऋग्वेद को होतृवेद भी कहते है। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद को कहा जाता है ऋग्वेद की उत्पत्ति अग्नि से बतलाई गई है तथा हमारा प्राचीन और पुरातन ऋग्वेद वाक्तत्व का संकलन है।

ऋग्वेद का विभाजन –

                             ऋग्वेद में मन्त्रों का दो प्रकार से विभाजन किया गया है ।

1-अष्टकक्रम

2-मंडलक्रम

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1- अष्टकक्रम

                प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय होते हैं जिससे ऋग्वेद में कुल 64 अध्याय हैं (8×8=64)।

प्रत्येक अध्याय के अवान्तर विभागों का नाम ‘वर्ग’ है। वर्गों में ऋचाओं की संख्या अनिश्चित है। एक वर्ग में लगभग पांच ऋचाओं का समूह मिलता है लेकिन कुछ वर्गों में नव मन्त्रों तक के समूह मिलते हैं। ऋग्वेद में 2024 वर्ग पायें जातें हैं।

2- मण्डलक्रम

          मंडलक्रम के अनुसार संपूर्ण ऋग्वेद को 10 मंडलों में बांटा गया है । इसीलिए इसे ‘दशतयी’ नाम से भी जाना जाता है प्रत्येक मंडल में अनुवाक, सूक्त और मंत्र है । ऋग्वेद के 10 मंडलों में 85 अनुवाक है। तथा ऋग्वेद में कुल सूक्त की संख्या 1028 है । जिसमें बालखिल्य 11 सूक्त माने जाते हैं। अगर मन्त्रों की संख्या की बात करें तो ऋग्वेद में 10580 – 1/4 है ।कहीं- कहीं मन्त्रों की संख्या 10552 भी मानी जाती है ।

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मंडलक्रम के अनुसार ऋग्वेद का विभाजन- 

 

Rigved

 

ऋग्वेद में छन्द –

                 ‘यदक्षरपरिमाणं तच्छन्द:’ अर्थात् जिसमें वर्णों की या अक्षरों की संख्या निश्चित हो तथा यति आदि से युक्त हो उसे छन्द कहते हैं । आचार्य पिंगल को छंदशास्त्र का प्रणेता माना जाता है । मुख्य रूप से ऋग्वेद में सात छंदों का प्रयोग हुआ है।

  • गायत्री – 24
  • उष्णिक – 28
  • अनुष्टुप – 32
  • बृहती – 36
  • पंक्ति – 40
  • त्रिष्टुप – 44
  • जगती – 48

ऋग्वेद की शाखाएं – 

               महर्षि पतंजलि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं है। ‘चरणव्यूह‘ के अनुसार वर्तमान में ऋग्वेद की पांच शाखाएं प्राप्त हैं । जिसमें से वर्तमान समय में केवल शाकल शाखा प्राप्त होती है।

  1. शाकल
  2. बाष्कल
  3. आश्वलायन
  4. शांखायन
  5. माण्डूकायन

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ब्राह्मण ग्रन्थ – 

                ऋग्वेद से संबंधित दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं-

1- ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ – 

                    ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में 40 अध्याय पाए जाते हैं। प्रत्येक पांच अध्याय की एक पंचिका और प्रत्येक अध्यायों में कंडिकाएं पाई जाती हैं । जो खंड के नाम से भी जानी जाती हैं । ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में 8 पंचिकाएं और 285 खंड है ।

2- कौषीतकि ब्राह्मण ग्रंथ – 

             कौषीतकि ब्राह्मण ग्रंथ को शांखायान ब्राह्मण ग्रंथ कहते हैं । इस ब्राह्मण ग्रंथ में 30 अध्याय और 226 खंड है ।

आरण्यक ग्रन्थ – 

                 ऋग्वेदियआरण्यक ग्रंथ दो है।

1 – ऐतरेय आरण्यक – 

         इस आरण्यक में पांच भाग है, जिन्हें प्रपाठक कहते हैं।

2 – शांखायन आरण्यक –

            इस शांखायन आरण्यक में 15 अध्याय निहित है।

उपनिषद

          ऋग्वेद में दो उपनिषद प्राप्त होते हैं –

1 – ऐतरेय उपनिषद – इस उपनिषद में तीन अध्याय हैं।

2 – कौषीतकि उपनिषद – इस उपनिषद में चार अध्याय मिलें हैं।

कल्प सूत्र – 

    जिन ग्रन्थों में यज्ञ संबंधी नियमों का समर्थन या प्रतिपादन किया जाता है, उसे कल्प कहते हैं कल्प के चार भेद हैं। 1- श्रौत सूत्र, 2- गृह्य सूत्र , 3- धर्म सूत्र , 4- शुल्ब सूत्र।

ऋग्वेद के दो श्रौतसूत्र पाए जाते हैं- आश्वलायन, शांखायन।

ऋग्वेद के तीन गृह्यसूत्र पाए जाते हैं-आश्वलायन, शांखायन, कौषीतकि।

ऋग्वेदीय धर्मसूत्र की संख्या एक है- वसिष्ठ धर्मसूत्र। 

ऋग्वेद में कोई शुल्बसूत्र नहीं पाया जाता है।

प्रतिशाख्य

           ऋग्वेद में केवल ‘ऋक् प्रतिशाख्य‘ पाया जाता है, इसके रचयिता महर्षि शौनक हैं। ऋग्वेदी ‘ऋक् प्रतिशाख्य‘ तीन अध्याय में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय में ६ पटल पाए जाते हैं। अर्थात् ‘ऋक् प्रतिशाख्य’ में 18 पटल है।

ऋग्वेदीय शिक्षा – 

                ऋग्वेद में दो शिक्षा ग्रंथ पाए जाते हैं – 1- पाणनीय शिक्षा, 2- वशिष्ठ शिक्षा ।

ऋग्वेद के महत्वपूर्ण तथ्य – 

• ऋग्वेद का सबसे प्राचीन अंश द्वितीय से सप्तम मंडल तक माना जाता है ।

• 2 से 7 तक के मंडल को वंश मंडल अथवा परिवार मंडल कहते हैं ।

• आठवें मंडल में अधिकांश सूक्त कण्व परिवार के हैं

• 9वें मंडल में समस्त मंत्र सोमविषयक है इसे ‘पवमान सोम मंडल’ भी कहा जाता है ।

• ऋग्वेद का दशम मंडल अर्वाचीन है ।

• दशम मंडल में देवताओं की स्तुति से संबंधित सूक्त अपेक्षाकृत बहुत कम है ।

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