Rishi Vashishth – महर्षि विश्वामित्र ने अपने गुरु के ऊपर ही चला दिया विनाशक दिव्य ब्रह्मास्त्र

महर्षि वशिष्ठ एक ऋषि है। इन्हें Rishi Vashishth के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक काल के विख्यात ऋषियों में से ऋषि वशिष्ठ ऋषि थे। ऋषि वशिष्ठ सप्त ऋषियों में गिने जाते थे। महर्षि वशिष्ठ त्रिकालदर्शी ऋषि थे। महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ के राजगुरु और श्रीराम के गुरु थे। वशिष्ठ का विवाह राजा दक्ष प्रजापति और प्रसूति की पुत्री अरुंधति से हुआ था। महर्षि वशिष्ठ ब्रह्मा के मानस पुत्र थे।

Rishi Vashishth

महर्षि विश्वामित्र ने गुरू महर्षि वशिष्ठ के ऊपर ही चला दिया विनाशक ब्रह्मास्त्र? :-

महर्षि विश्वामित्र पहले एक राजा थे और बाद में वो ऋषि और फिर महर्षि बने। महर्षि वशिष्ठ के पास योग साधना से बहुत सारी शक्तियां प्राप्त थी। उनकी शक्तियों से प्रभावित होकर ही राजा विश्वामित्र योग साधना की तरफ मुड़ गए थे। महर्षि विश्वामित्र ने वशिष्ठ के 100 पुत्रों को मार दिया था फिर भी महर्षि वशिष्ठ ने विश्वामित्र को क्षमा कर दिया था । कोई भी सूर्यवंशी राजा बिना महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा के कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं करता था।

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दोनों में कई बार आमने सामने की लड़ाई होती है। ब्रह्मास्त्र का भी प्रयोग होता है। ब्रह्मास्त्र हिन्दू ग्रंथों का और प्राचीन भारत का सबसे बड़ा विनाशक शस्त्र माना गया है। महर्षि विश्वामित्र ने बड़ी तपस्या और मेहनत से ब्रह्मास्त्र अर्जित किया और उन्होंने सोचा कि वो अब गुरु वशिष्ठ को हरा कर उन्हें नीचा दिखा सकेंगे।

 

लेकिन गुरु वशिष्ठ एक बहुत ही सुलझे ऋषि थे। उनके पास बहुत सारी ऐसी शक्तियां है जिन्हें वो आमतौर पर प्रदर्शित नहीं करते थे , लेकिन समय आने पर वो उनका प्रयोग करके उन शक्तियों को सम्मान देते रहते है।

 

महर्षि वशिष्ठ के ब्रह्मतेज से ब्रह्मास्त्र भी हुआ ठंडा? :-

बाल्मीकि रामायण के 55वें – 56वें सर्ग में जब महर्षि विश्वामित्र ऋषि वशिष्ठ के आश्रम पर ब्रह्मास्त्र से आक्रमण करते है। और विश्वामित्र सोचते रहते है कि वो इस बार अपने ब्रह्मास्त्र से महर्षि वशिष्ठ को हरा ही देंगे। लेकिन होता उस से उलट है। जैसे ही आश्रम पर विश्वामित्र हमला करते है तो एक बार में उथल-पुथल मच जाती है। पशु पक्षी तक भयभीत होकर विभिन्न दिशाओं में भागने लगते है और आश्रम 2 घड़ी में ही सुना हो जाता है।

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लेकिन वशिष्ठ शांत है और आत्मविश्वास से भरे शब्दों में कहते है कि – डरो मत, भागो मत, मैं अभी इस विश्वामित्र को नष्ट किए देता हूं। ठीक उसी तरह जैसे सूर्य अंधकार को मिटा देता है। उधर विश्वामित्र ब्रह्मास्त्र छोड़ चुके है। Rishi Vashishth अपना ब्रह्मदंड निकालते है। यह यमदंड के समान एक डंडे के रूप का एक अस्त्र होता है।

कुछ ही क्षणों में वशिष्ठ जी ने अपने ब्रह्मतेज के प्रभाव से भयंकर ब्रह्मास्त्र को भी ब्रह्मदंड से शांत कर दिया। महाबली विश्वामित्र गुरु वशिष्ठ से फिर से पराजित हो गए। पराजित होने के बाद पराजित विश्वामित्र ने कहा? – क्षत्रिय के बल को धिक्कार है। ब्रह्मतेज से प्राप्त होने वाला बल ही वास्तव में बल है, क्योंकि आज एक ब्रह्मदंड ने मेरे सभी अस्त्र नष्ट कर दिए।

Rishi Vashishth

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Rishi Vashishth के महत्वपूर्ण योगदान :-

1- ब्रह्मा जी द्वारा ज्ञान का मार्ग दिखाने के बाद वशिष्ठ जी ने पृथ्वी धाम पर मानव-शरीर में आना स्वीकार किया। गुरु वशिष्ठ ने सूर्यवंश का पौरोहित्य कार्य करते हुए कई लोक कल्याणकारी कार्यों को सम्पन्न किया।

2- इन्हीं के उपदेश देने के बाद भागीरथ ने प्रयास करके लोक कल्याणकारी गंगा नदी को धरती पर लाए थे।

3- वशिष्ठ जी ने ही दिलीप को नंदिनी की सेवा की शिक्षा दी थी, जिससे रघु जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

4- मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का गुरु होने का सौभाग्य वशिष्ठ जी को प्राप्त है।

5- विश्वामित्र यज्ञ-रक्षा के लिए राम-लक्ष्मण को मांगने दशरथ के पास आए तो वशिष्ठ के ही कहने पर दशरथ ने अपने पुत्रों को साथ भेजा था।

6- भीष्म ने वेदों का ज्ञान इन्हीं से पाया था और शरशय्याधारी होने पर भीष्म को घेरकर खड़े ऋषियों में ये भी सम्मिलित थे।

7- महर्षि वशिष्ठ धृतराष्ट्रपाण्डु के आदि-पूर्वज हैं। इस महाकाव्य में वे शक्ति के पिता हैं और शक्ति के पुत्र पाराशर हैं। पाराशर के ही पुत्र महर्षि वेदव्यास हैं, जो न केवल महाभारत के रचयिता हैं बल्कि धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के जन्मदाता पिता भी हैं।

8- Rishi Vashishth स्वयं मर्यादित जीवन व्यतीत करते हुए दूसरों को भी मर्यादा में रहने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।

9- अर्जुन के जन्म के समय उपस्थित सात महर्षियों में भी ये एक थे।

 

 

 

 

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