Pratyahar-प्रत्याहार

                 Pratyahar-प्रत्याहार

माहेश्वर सूत्रों से pratyahar बनाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है । प्रत्याहार बनाने के लिए आदिऽन्त्येन सहेता सूत्र से 42 प्रत्याहार बनाते हैं । अन्तिम इत्संज्ञक वर्णों के साथ आदि वर्ण को लेकर प्रत्याहार का निर्माण करते हैं , और वर्णों की गणना करते समय इत् वर्ण की गणना नहीं करते हैं ।

Pratyahar-प्रत्याहार

Sanskrit vyakaran

प्रत्याहार :-

प्रत्याहार का शाब्दिक अर्थ है – “संक्षिप्तीकरण ” अर्थात् बड़ी से बड़ी बात को छोटे में कह देना या संक्षेप में बता देना ही pratyahar कहलाता है।

 

Example – अच् कहने से सम्पूर्ण स्वर का बोध होता है।

और हल् कहने से संपूर्ण व्यंजन का बोध होता है।

 

जैसे- अ इ उ ण् में ण् इत् वर्ण की गणना नहीं करते हैं । अ आदि वर्ण और मध्य में आने वाले वर्ण इ उ की गणना की जाएगी । कुछ नियम अन्य प्रत्याहारों के विषय में जानना चाहिए । कुछ आचार्यगण र प्रत्याहार को 43 वाँ प्रत्याहार भी मानते है । प्रत्याहारों की सूची इस प्रकार है—-

प्रत्याहार सूची:- प्रत्याहार सूची निम्नलिखित है।

अण् अ, इ, उ

अक् अ, इ, उ, ऋ, लृ ( मूल स्वर )

अच् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ (सम्पूर्ण स्वरवर्ण)

अट् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र,

अण् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल

अम् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल, ञ, म,

ङ, ण, न

अश् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल, ञ,

म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द

अल् अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल, ञ,

म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ,

छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह

(सम्पूर्ण स्वर व्यंजन)

इक् इ, उ, ऋ, लृ

इच् इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ

इण् इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल

12- उक् उ, ऋ, लृ

13- एङ् ए, ओ (गुणसंज्ञक वर्ण)

14- एच् ए, ओ, ऐ, औ ( संयुक्त स्वर)

15- ऐच् ऐ, औ ( वृद्धि संज्ञक वर्ण )

16- हश् ह,य,व,र,ल,ञ,म,ङ,ण,न,झ,भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द

17- हल् ह, य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज,

ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष,

स, ह ( सम्पूर्ण व्यंजन वर्ण)

18- यण् य, व, र, ल ( अन्तस्थ वर्ण )

19- यम् य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न

20- यञ् य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ

21- यय् य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब,

ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प

22- यर् य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब,

ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स

23- वश् व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग,

ड, द

24- वल् व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग,

ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह

25- रल् र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड,

द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह

26- मय् म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ,

छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प

27- ङम् ङ, ण, न

28- झष् झ, भ, घ, ढ, ध ( वर्गों के चतुर्थ वर्ण )

29- झश् झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द

30- झय् झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट

त, क, प

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31- झर् झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च,

ट, त, क, प, श, ष, स

32- झल् झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह

33- भष् भ, घ, ढ, ध

34- जश् ज, ब, ग, ड, द ( वर्गों के तृतीय वर्ण )

35- बश् ब, ग, ड, द

36- खय् ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प

37- खर् ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स

38- छव् छ, ठ्, थ, च, ट, त

39- चय् च, ट, त, क, प ( वर्गों के प्रथम वर्ण )

40- चर् च, ट, त, क, प, श, ष, स

41- शर् श, ष, स,

42- शल् श, ष, स, ह ( उष्मवर्ण )

 
 
 
महत्वपूर्ण तथ्य – 
महर्षि पतंजलि ने भी pratyahar की चर्चा अपने योग सूत्र में की है। योग सूत्र में आए हुए प्रत्याहार का अर्थ ज्ञान को बाहरी विषयों से हटाकर एक जगह केंद्रित करना है। 
नोट- इन 42 प्रत्याहारों के अलावा र प्रत्याहार भी है जिसको आधुनिक वैय्याकरण नही मानते है।
 
 
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