प्रयत्न

                      -:••प्रयत्न••:-

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 प्रयत्न :- प्रयत्न का शाब्दिक अर्थ है – प्रयास।

प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं:-
                       किसी वर्ण को बोलने के लिए मुख से दो प्रकार का प्रयास किया जाता है- जो प्रयास मुख के अन्दर होता है उसे आभ्यन्तर प्रयत्न और जो प्रयास मुख के बाहरी आवरण पर होता है उसे बाह्य प्रयत्न कहते है। लेकिन प्रयत्न को जानने से पहले उच्चारण स्थान को समझना जरूरी है।उच्चारण स्थान क्या है पहले इस पर चर्चा करते हैं-

 

उच्चारण स्थान:-

                    उच्चारण स्थान को दूसरे शब्दों में कहें तो, बर्थ प्लेस अर्थात् जन्म स्थान । जैसे-व्यक्ति अपने जन्म स्थान से पहचाना जाता है, ठीक उसी तरह वर्ण जिस भाग से उच्चारित होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते है । वर्णों के उच्चारण स्थान निम्नलिखित है—

 

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः – अठारहों प्रकार के सभी अकार, कवर्ग, हकार और विसर्ग का उच्चारण स्थान कण्ठ हैं । वर्णों की उत्पत्ति मुख के जिस भाग से होती है, वह स्थान वर्णों का उच्चारण स्थान कहलाता है। अकार, कवर्ग—क ख ग घ ङ, हकार और विसर्ग का उच्चारण स्थान कण्ठ हैं । इसलिए इन वर्णों को कण्ठय वर्ण कहते हैं ।

इचुयशानां तालु—अठारहों प्रकार के सभी इकार, चवर्ग, यकार, शकार का उच्चारण स्थान तालु है । इकार, चवर्ग—च छ ज झ ञ, यकार, शकार के उच्चारण में जिह्वा तालु को स्पर्श करती है इसलिए इसे तालु वर्ण कहते है ।
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ऋटुरषाणां मूर्धा—अठारहों प्रकार के सभी ऋकार, टवर्ग, रेफ, और षकार का उच्चारण स्थान मूर्धा है। ऋकार, टवर्ग- ट ठ ड ढ ण, र और षकार के उच्चारण में जिह्वा पीछे की तरफ मुड़कर जिस भाग को स्पर्श करती है उसे मूर्धा कहते हैं ।

इसलिए इसे मूर्धा वर्ण कहते है ।

लृतुलसानां दन्ताः – बारहों प्रकार के सभी लृकार, तवर्ग, लकार और सकार का उच्चारण स्थान दन्त है । लृकार, तवर्ग- त थ द ध न , लकार और सकार के उच्चारण स्थान में जिह्वा दाँत को स्पर्श करती है इसलिए इसे दन्त वर्ण कहते है ।

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उपुपध्यमानीयानामोष्ठौ – अठारहों प्रकार के सभी उकार, पवर्ग, उपध्मानीय – विसर्ग, का उच्चारण स्थान ओष्ठ है । उकार, पवर्ग- प फ ब भ म, उपध्मानीय विसर्ग का उच्चारण दोनों ओठों के आपस मे मिलने से होता है । इसलिए इन्हें ओष्ठ वर्ण कहते है।

ञमङणनानां नासिका च – ञ म ङ ण न, वर्णों का उच्चारण स्थान नासिका है और साथ ही साथ स्व वर्गीय उच्चारण स्थान भी है। ञ का उच्चारण नासिका के साथ तालु भी है। ङ का नासिका के साथ कण्ठ, म का नासिका के साथ ओष्ठ, ण का नासिका के साथ मूर्धा, न का नासिका के साथ दन्त है।

एदैतोः कण्ठतालु – ए और ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठ और तालु है। क्योंकि ए वर्ण अ + इ से मिलकर बना है। अ का कण्ठ और इ का तालु है इसलिए ए वर्ण का उच्चारण स्थान कण्ठतालु हुआ ।

ओदौतोः कण्ठोष्ठम् — ओ और औ का उच्चारण स्थान कण्ठ और ओष्ठ है । अतः इनका उच्चारण स्थान कण्ठोष्ठ है। अ + उ = ओ

वकारस्य दन्तोष्ठम् – वकार- व का उच्चारण स्थान दाँत और ओष्ठ है ।

जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् – जिह्वामूलीय विसर्ग का उच्चारण स्थान जिह्वामूल है, क्योंकि इसका उच्चारण स्थान सीधे जीभ के मूल भाग से उच्चारित होता है ।

नासिकाऽनुस्वारस्य – अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका के सहयोग से होता है, इसलिए इसका उच्चारण स्थान नासिका है

प्रयत्न

 

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उच्चारण स्थान जानने के बाद प्रयत्न जानने की जिज्ञासा होती है, क्योंकि सवर्ण संज्ञा में प्रयत्न की भी आवश्यकता होती है । अब आगे प्रयत्न की चर्चा की गयी है ।

यत्नो द्विधा- आभ्यन्तरो बाह्यश्च – प्रयत्न दो प्रकार के है।

1 – आभ्यन्तर प्रयत्न ।
2 – बाह्य प्रयत्न ।

1 – आभ्यन्तर प्रयत्न—आभ्यन्तर प्रयत्न पाँच प्रकार के हैं—स्पृष्ट, ईषत् स्पृष्ट, विवृत, ईषत् विवृत , संवृत।

स्पृष्टकादयो मावसानाः स्पर्शाः। क से लेकर म तक के वर्ण स्पृष्ट संज्ञक है। स्पर्श वर्णों की संख्या 25 है ।

ईषत् स्पृष्टईषत्स्पृष्टमन्तः स्थानाम्। यण् – य, व, र, ल वर्णों का प्रयत्न ईषत् स्पृष्ट है। अर्थात् अन्तःस्थ वर्णों का उच्चारण स्थान ईषत् स्पृष्ट है। इनकी संख्या 4 है।

विवृतविवृतं स्वराणाम्। सम्पूर्ण स्वरों का प्रयत्न विवृत है। अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ वर्ण विवृत है । इनकी संख्या 9 है ।

ईषत् विवृतईषद्विवृतमूष्मणाम्। उष्मसंज्ञक वर्ण श,ष,स,ह का प्रयत्न ईषत् विवृत है । इनकी संख्या 4 है।

संवृतह्रस्वस्यावर्णस्य प्रयोगे संवृतम् , प्रक्रियादशायां तु विवृतमेव। ह्रस्व अवर्ण उच्चारणावस्था में संवृत प्रयत्न और प्रयोगसिद्धि की अवस्था में विवृत प्रयत्न रहता है ।


2 – बाह्य प्रयत्न – बाह्य प्रयत्न 11 प्रकार के होते हैं ।

बाह्यस्त्वेकादशधा- विवारः संवारः श्वासो नादो घोषाऽघोषोऽल्पप्राणो महाप्राण उदात्तोऽनुदात्तः स्वरितश्चेति।

विवार, संवार, श्वास, नाद, घोष, अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित ये बाह्य प्रयत्न के भेद है ।

खरो विवाराः श्वासा अघोषाश्च – खर् प्रत्याहार में आने वाले वर्ण विवार, श्वास, अघोष है।

खर् प्रत्याहार में सभी वर्गों के प्रथम और द्वितीय तथा श,ष,स वर्ण आते हैं ।

क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स

इनकी संख्या 13 है।

हशः संवारा नादा घोषाश्च– हश् प्रत्याहार में कहें गये वर्ण संवार, नाद, और घोष है।

हश् प्रत्याहार में सभी वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पंचम और य, व, र, ल वर्ण आते हैं ।

ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य,व, र, ल

इनकी संख्या 19 है।

अल्प प्राण:- ऐसे शब्द जिनके उच्चारण में कम प्राण वायु की आवश्यकता हो उसे अल्पप्राण वर्ण कहते हैं ।
वर्गाणां प्रथमतृतीयपञ्चमा यणश्चाल्पप्राणाः– वर्गों के प्रथम, तृतीय, पंचम अक्षर और यण् – य, व, र, ल, का अल्पप्राण प्रयत्न होता है ।

वर्गों के प्रथम अक्षर—क, च, ट, त, प

वर्गों के तृतीय अक्षर—ग, ज, ड, द, ब

वर्गों के पंचम अक्षर—ङ, ञ, ण, न, म

यण् प्रत्याहार के अक्षर—य, व, र, ल

इनकी संख्या 19 है।

महाप्राण:- ऐसे वर्ण जिनको उच्चारण करने में ज्यादा प्राणवायु की आवश्यकता हो उसे महाप्राण वर्ण कहते हैं

वर्गाणां द्वितीयचतुर्थौ शलश्च महाप्राणाः– वर्गों के द्वितीय, चतुर्थ अक्षर और शल्- श, ष, स, ह का महाप्राण प्रयत्न होता है ।

वर्गों के द्वितीय अक्षर—ख, छ, ठ, थ, फ

वर्गों के चतुर्थ अक्षर – घ, झ, ढ, ध, भ

शल् प्रत्याहार के अक्षर—श, ष, स, ह

इनकी संख्या 14 है ।

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