Meghdoot-shlok
पूर्वमेघ श्लोक 16 से 20 तक व्याख्या –
पूर्वमेघ की कहानी:-
कोई यक्ष कार्य में प्रमाद करने के कारण अपने प्रभु कुबेर के शाप से कैलाश पर्वत पर अवस्थित अलकापुरी से 1 वर्ष के लिए निष्कासित हुआ और निष्कासित यक्ष अपनी प्रेमिका से बिछड़ने के शोक से दुखी होकर रामगिर के आश्रमों में रहा करता था और जब आषाढ़ मास के प्रथम दिन में नवीन मेघ को देखा है, और अपनी प्रियतमा की स्मृति से शोकाकुल होकर बहुत अधीर हो गया है- यक्ष के कामातुर होने से उसे चेतन और अचेतन की सुध ना रही। यक्ष मेघ से अपनी प्रियतमा तक संदेश पहुंचाने के लिए मेघ की सुन्दरता , मेघ के गुण, आदि का बखान करता है । इसके बाद यक्ष मेघ के साथ जाने वाले साथियों का वर्णन करता है। आगे meghdoot Shlok की कहानी क्रमशः श्लोक और विडियो के माध्यम से जानेंगे-
Purv Meghdoot shlok –
त्वय्यायत्तं कृषिफलमिति भ्रूविलासानभिज्ञैः
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पोयमानः ।
सद्यः सोरोत्कषणसुरभिक्षेत्रमारुह्य मालं
किञ्चित्पश्चाद्वज लघुगतिभूय एवोत्तरेण ॥१६।।
व्याख्या –
मेघ मालवा प्रदेश पहुंचता है। तब यक्ष मालवा प्रदेश का वर्णन करते हुए कहता है कि- यह खेती का परिणाम तुम्हारे अधीन है इसीलिए भौहों के विलास से अपरिचित एवं प्रेम से युक्त ग्रामीण स्त्रियों की आंखों से तुम देख जाओगे। और तुम अभी-अभी हल जोतने से सुगंध युक्त खेतों वाले माल प्रदेश के ऊपर से होकर कुछ पश्चिम दिशा की ओर जाना फिर तीव्र गति से उत्तर की ओर प्रस्थान कर देना।
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मल्लिनाथ के अनुसार-
इस श्लोक में यह ध्वनि स्पष्ट हो रही है । जैसे कोई अनेक स्त्रियों का पति किसी एक के साथ विहार करके दाक्षिण्य में खलल पड़ने के भय से गुप्त द्वारा से निकलकर दूसरी पत्नी के पास पहुंच जाता है। उसी तरह मेघ ग्राम स्त्रियों की चितवन का आनंद लेता हुआ माल देश के ऊपर से होकर कुछ पश्चिम की ओर जाकर फिर उत्तर की ओर प्रस्थान कर जाएगा।
त्वामासारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना
वक्ष्यत्यध्वश्रमपरिगतं सानुमानाम्रकूटः ।
न क्षुद्रोऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः कि पुनर्यस्तथोच्चैः ॥१७।।
व्याख्या –
यक्ष मेघ से कहता है कि हे मेघ जब तुम आम्रकूट पर्वत पर मूसलाधार दृष्टि से उस पर्वत की दावाग्नि को शांत करने वाले तथा मार्ग की थकावट से चूर तुम्हें अच्छी तरह अपनी सिर पर धारण करेगा। क्योंकि छोटा व्यक्ति भी आश्रय के लिए मित्र के आने पर उसके द्वारा पहले के किए हुए उपकार को सोचकर उसका सत्कार करने में मुंह नहीं मोड़ता है। फिर जो उतना महान है, उसकी बात ही क्या?।
इस श्लोक का मूल भाव यह है कि मेघ की यात्रा सफल होगी। क्योंकि उसकी पहली मंजिल आम्रकूट पर सुख से कटेगी।
छन्नोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननाम्रै-
स्त्वप्यारूढे शिखरमचलः स्निग्धवेणीसवर्णे ।
नूनं यास्यत्यमरमिथुनप्रेक्षणीयामवस्थां
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डुः ।।१८।।
व्याख्या –
यक्ष मेघ से कहता है कि हे मेघ जब तुम आम्रकूट पर्वत पर विराजमान हो जाओगे तो तुम्हारा शरीर चिकनी बालों के जूड़े के समान( सांवले रंग वाले ) मेघ तुम दिखाई पड़ोगे । और पके हुए फलों से चमकने वाले जंगली आमों से ढके हुए ( पीले रंग के समान दिखने वाले ) आम्रकूट पर्वत के शिखर पर मध्य भाग में काले रंग के दिखाई पड़ोगे, और शेष भाग आम के पकने के कारण पीला दिखाई पड़ेगा। ऐसा वहां की वन देवी देवताएं तुम्हें पृथ्वी के स्तन के समान तुम्हें अवश्य देखेंगी।
इस श्लोक का भाव यह है कि हे मेघ जब तुम आम्रकूट पर्वत पर विराजमान हो जाओगे। तब वह पर्वत देवी देवताओं को ऐसा दिखाई पड़ेगा। मानो वह पृथ्वी का उठा हुआ ऐसा स्तन है जिसके बीच में काला और चारों ओर पीला दिखाई पड़ेगा।
मल्लिनाथ के अनुसार –
जैसे कोई थका हुआ कामी पुरुष कामिनी के कुचलकश पर लेटकर विश्राम लेता है उसी तरह मेघ भी पृथ्वी के कुच रूपी आम्रकूट पर विश्राम लेगा।
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स्थित्वा तस्मिन् वचनरवधूभुक्तकुञ्ज मुहूर्तं
तोयोत्सर्गद्रुततरगतिस्तत्परं वर्त्म तीर्णः ।
रेवां द्रक्ष्यस्युपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णां
भक्तिच्छेदैरिव विरचितां भूतिमङ्गे गजस्य ।।१९॥
व्याख्या –
यक्ष मेघ से नर्मदा नदी का वर्णन करते हुए कहता है हे मेघ उन जंगलों में निवास करने वाली स्त्रियों के द्वारा उपभोग किए गए आम्रकूट के कुंजों पर, क्षण भर ठहर कर पानी बरसा करके हल्के हो जाना । और जब तुम हल्के हो जाओगे , तुम्हारी गति तीव्र हो जाएगी ।और तुम इस आम्रकूट पर्वत को पार करके पत्थरों से उभड़ खाबड़ विंध्याचल की तलहटी में फैली हुई नर्मदा नदी को हाथी के शरीर पर रेखाओं की विचित्रताओं से निर्मित श्रृंगार के समान देखोगे।
अर्थात् जैसे शादी विवाह में हाथी के मस्तक पर चाक से हाथी पर सुंदर आकृति उकेर दी जाती है और वह हाथी खूबसूरत दिखाई देने लगता है ऐसे ही तुम उस नर्मदा नदी को देखोगे।
तस्यास्तिक्तैर्वनगजमदैर्वासितं वान्तवृष्टि-
र्जम्बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयमादाय गच्छेः ।
अन्तःसारं घन ! तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति त्वां
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय ।।२०।।
व्याख्या –
यक्ष मेघ से कहता है कि हे मेघ जब तुम बरस चुके होंगे !तो जंगली हाथियों के सुगंधित मद में बसा हुआ और जामुन के कुंजों से रोके गए वेग वाले उसे नर्मदा नदी का जल ग्रहण करके जाना। हे मेघ! अन्त:शक्ति से युक्त (अर्थात् जल से युक्त) तुम्हें वायु उड़ा नहीं सकेगा । क्योंकि खाली सब हल्के होते हैं और भरा पूरा होना गौरव ( वृद्धि) के लिए होता है ।
शेष Meghdoot Shlok की व्याख्या अगले भाग में……..
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