Pawan Dutika – पवन दूतिका

                         पवन-दूतिका 

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जीवन परिचय :-

             अयोध्या सिंह उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1865 ई को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित भोला सिंह उपाध्याय था । 5 वर्ष की अवस्था में फारसी के माध्यम से उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई।  वर्नाक्यूलर मिडिल पास करके ये क्वींस कॉलेज बनारस में अंग्रेजी पढ़ने गए। लेकिन अस्वस्थता के कारण अध्ययन छोड़ना पड़ा।  स्वाध्याय से इन्होंने हिंदी संस्कृत फारसी और अंग्रेजी में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। निजामाबाद के मिडिल स्कूल के अध्यापक पद पर, कानूनगो पद पर और काशी विश्वविद्यालय में अवैतनिक शिक्षक के पदों पर इन्होंने कार्य किया। 6 मार्च सन् 1947 ई को इनका देहावसान हो गया।

Pawan dutika

प्रमुख रचनाएं :- 

                    प्रिय प्रवास, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, वैदेही वनवास, अधखिला फूल, ठेठ हिन्दी का ठाठ और रुक्मिणी परिणय Pawan Dutika आदि।

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पवन-दूतिका की सन्दर्भ सहित व्याख्या :-

                                        संस्कृत साहित्य के हंसदूत और कालिदास विरचित मेघदूत आदि की प्रणाली पर हरिऔध जी ने भी अपने प्रिय प्रवास में वियोगिनी राधा से पवन को दूती बनाकर कृष्ण के पास संदेश भिजवाया है। कवि ने राधा के विरह-कातरा रूप से कहीं बढ़कर परदु:खकातरा स्वरूप प्रस्तुत किया है । लोक-सेविका राधा के उदात्त भावनाएं उनके चरित्र को नवीनता प्रदान करती है। Pawan Dutika की व्याख्या में राधिका के विरह को जानेंगे।

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली। 

            आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।

आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले। 

             प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।1।।

सन्दर्भ

      प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के पद्यखंड में निहित ‘पवन दूतिका’ नामक शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी है।

व्याख्या

         हरिऔध जी कह रहे है कि एक दिन राधा जी खिन्न होकर महलों में अकेली बैठी थी । और राधा जी के दोनों आंखों से आंसू इतने बह रहे थे कि पृथ्वी भीग जा रही थी। तभी सुबह वाली हवा जो पुष्प की सुगंधि लिए राधा जी के महलों में खिड़कियों के माध्यम से महलों में प्रवेश की।

काव्य सौंदर्य :-

रस: वियोग श्रृंगार, भाषा: खड़ीबोली, शैली: प्रबन्ध, छन्द: मन्दाक्रान्ता, अलंकार: अनुप्रास तथा मानवीकरण, गुण: प्रसाद, शब्द शक्ति: अभिधा।

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संतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो। 

            धीरे बोलीं स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों। 

प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती। 

            क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से ।।2।।

सन्दर्भ

      प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के पद्यखंड में निहित ‘पवन दूतिका’ नामक शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी है।

व्याख्या :-

           कवि कहते है कि शीतल मंद सुगंध हवाओं के प्रवेश से राधिका जी का दुख और बढ़ गया। राधा जी पवन रूपी दूती को कोसते हुए कहती है कि ऐ हवा तुम मुझे इतना क्यों सताती हो, क्या तुम मेरे दुख को नहीं समझती हो । अर्थात् ऐ पवन रूपी दूती तुम इतना क्रूर कैसी हो गई कि एक दुखी स्त्री के दुख को और दुखी कर रही हो।

काव्य सौंदर्य :-

रस: वियोग शृंगार, भाषा: खड़ीबोली, शैली: प्रबन्ध, छन्द: मन्दाक्रान्ता, अलंकार: अनुप्रास तथा मानवीकरण, गुण: प्रसाद, शब्द शक्ति: अभिधा।

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मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले। 

          जाके आये न मधुवन से औ न भेजा सँदेसा। 

मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ। 

           जा के मेरी सब दुख-कथा श्याम को तू सुना दे ।।3।।

सन्दर्भ

      प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के पद्यखंड में निहित ‘पवन दूतिका’ नामक शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी है।

व्याख्या :-

       राधा जी पवन दूती से कहती है कि मेरे कान्हा नए बादल के समान कमल रूपी नेत्र वाले इस मधुबन को छोड़कर चले गए । दोबारा लौट कर नहीं आए और अपना कोई संदेश भी नहीं भेजा। जिससे मैं अपने उस कान्हा के वियोग में रो-रो कर पागल हो रही हूं । इसलिए हे पवन दूती मेरी इस विरह वियोग की दशा को जाकर उस कान्हा को बता देना।

काव्य सौंदर्य :-

रस: वियोग शृंगार, भाषा: खड़ीबोली, शैली: प्रबन्ध, छन्द: मन्दाक्रान्ता, अलंकार: अनुप्रास पुनरूक्तिप्रकाश तथा मानवीकरण, गुण: प्रसाद, शब्द शक्ति: अभिधा ।

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी। 

           शोभावाली सुखद कितनी मंजु कुंजें मिलेंगी। 

प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे। 

           तो भी मेरा दुख लख वहाँ जा न विश्राम लेना ।।4।।

सन्दर्भ

      प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के पद्यखंड में निहित ‘pawan Dutika’ नामक शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी है।

व्याख्या

          राधिका पवन को रास्ता बताते हुए कहती है कि हे पवन दूती जैसे ही हमारे भवन को छोड़कर तुम आगे बढ़ोगी रास्ते में घनी कुंजे जो शोभा वाली मन को सुख देने वाली तुम्हें मिलेंगी । उस कुंज की शीतल छाया , मधुर स्वर, पक्षियों का कलरव तुम्हें अपनी और आकर्षित करेंगी । लेकिन तुम वहां की सुंदरता पर मुग्ध मत होना । मेरे दुख को याद करके तुम विश्राम मत करना अर्थात् मेरा संदेश कान्हा जी तक पहुंचाने के लिए आगे बढ़ जाना।

काव्य सौंदर्य:

          रस: वियोग शृंगार, भाषा: खड़ीबोली, शैली: प्रबन्ध, छन्द: मन्दाक्रान्ता, अलंकार: अन्त्यानुप्रास तथा मानवीकरण, गुण: प्रसाद, शब्द शक्ति: अभिधा ।

थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला। 

            अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली। 

प्यारा वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा। 

            आना जाना इस विपिन से मुह्यमाना न होना ।।5।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या :-

          राधा जी पवन दूती से कहती है कि जैसे तुम आगे बढ़ोगी तुम्हें प्यार वृंदावन दिखाई पड़ेगा । वह वृंदावन सैकड़ो पुष्पों वाला, अच्छे-अच्छे वृक्षों से युक्त, सुंदर लताओं से सौंदर्यशाली, पशु पक्षी की कलरव ध्वनि से तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेगा। तुम्हारा आना-जाना इसी वृंदावन से होगा । इसलिए हे पवन दूती उस वृंदावन को देखकर आकर्षित मत होना।

जाते जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे। 

            तो जाके सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना। 

धीरे धीरे परस करके गात उत्ताप खोना। 

             सद्गंधों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना ।।6।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

          हे पवन दूती यदि रास्ते में तुम्हें जाते वक्त कोई दुखी व्यक्ति मिल जावे । उसके समीप जाकर अपने स्पर्श से उसके दुख को मिटाना । और अपनी सुगंधित हवाओं के द्वारा उसके मन को प्रसन्नचित कर देना ।

लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये। 

            होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को। 

जो थोड़ी भी श्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना। 

            होंठों की औ कमल-मुख की म्लानलायें मिटाना।।7।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

         हे पवन दूती ! रास्ते में यदि तुम्हें कहीं जाती हुई महिला दिखाई पड़ जावे । तो अपने तीव्र हवा के झोंके से उस सुन्दरी के वस्त्रों को मत उड़ा देना । अर्थात् उस सुन्दरी महिला के पास धीरे-धीरे जाना और उसे अपने हवाओं रूपी गोद में लेकर के उसके श्रम को शांत करना और अपनी शीतल हवाओं के द्वारा होठों की मालीनताओं को दूर कर देना।

कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे। 

              धीरे धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना। 

जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला। 

                छाया द्वारा सुखित करना, तप्त भूतांगना को ।।8।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

        राधा जी पवन दूती से कहती है यदि रास्ते में तुम्हें खेतों में काम करते हुए किसान दिखाई पड़ जावे । तो धीरे-धीरे उनके पास जाकर के उनकी थकावट को दूर करना और आकाश मार्ग में यदि कोई बादल का टुकड़ा दिखाए पड़ जावे तो उस किसान को बादल की छाया द्वारा, शीतल हवाओं के द्वारा उसके गर्म शरीर को शीतलता पहुंचाना ।

जाते जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो। 

              न्यारी शोभा वर नगर की देखना मुग्ध होना। 

तू होवेगी चकित लख के मेरु से मन्दिरों को। 

              आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क से हैं ।।9।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

          मथुरा धाम देखने की उत्सुकता वाली हे पवन दूती ! जब तुम मथुरा धाम में पहुंचोगी तो वहां उस नगर की शोभा देखकर तुम मुग्ध हो जाओगी, या आकर्षित हो जाओगी। वहां के सुमेरु पर्वत जैसे ऊंचे ऊंचे मंदिरों को देखकर और उन मंदिरों के शिखर पर लगे हुए कलश तुम्हें दूसरे सूर्य के समान चमकते हुए दिखाई पड़ेंगे ।

देखे पूजा समय मथुरा मन्दिरों मध्य जाना। 

             नाना वाद्यों मधुर स्वर की मुग्धता को बढ़ाना। 

किंवा ले के रुचिर तरु के शब्दकारी फलों को। 

              धीरे-धीरे मधुर रव से मुग्ध हो हो बजाना ।।10।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

     राधा पवन से कहती है कि जब तुम पूजा के समय उस मथुरा के मंदिरों के बीच जाओगी । तो उन मंदिरों में अनेकों प्रकार के मधुर स्वर तुम्हें सुनाई पड़ेंगे । उन स्वरों को सुनकर उनके साथ तुम भी स्वरवान हो जाना अथवा अपनी रुचि के अनुसार शब्दकारी फलों के अनुरूप धीरे-धीरे अपने मधुर ध्वनि से युक्त होकर तुम भी अपने स्वर रूपी वाद्य यंत्रों को बजाना ।

तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गता हो। 

                   होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी। 

मुद्रा होगी वर वदन की मूर्ति-सी सौम्यता की। 

                   सीधे साधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से ।।11।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

         राधा जी श्याम का परिचय देते हुए कहती है हे पवन दूती तुम वहां पर बादल के समान श्री कृष्ण को वही देखोगी और उन्हीं में तल्लीन हो जाओगी । उनकी आंखों से चमकती हुई प्रकाश दिखाई पड़ेगी । वह श्याम तुम्हें ऐसी मुद्रा में दिखाई पड़ेंगे जैसे कोई सुंदर मूर्ति बैठी है । और उनके सीधे साधे वचन तुम्हें अमृत के समान सुनाई पड़ेंगे।

नीले फूले कमल दल सी गात की श्यामता है। 

                पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला। 

छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती। 

                सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती सी प्रभा है ।।12।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

        पवन दूती को राधा जी कृष्ण की सुंदरता बताते हुए कहती है वह श्याम नीले कमल फूल के समान दिखाई देंगे । वह श्याम कमर में पीला वस्त्र पहने हुए दिखाई पड़े और उनके चेहरे पर बालों की कुछ लट उनके मुख पर दिखाई देंगे जिससे उनके मुख की शोभा और सुंदर हो जाएगी । तुम्हें ऐसा दिखाई पड़ेगा कि जैसे उस कान्हा के सुंदर शरीर से और सुंदर वस्त्रों से कोई प्रकाश निकल रहा हो ।

साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली। 

            सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-संपोषिका है। 

दोनों कंधे वृषभ-वर से हैं बड़े ही सजीले। 

           लम्बी बाँहें कलभ-कर सी शक्ति की पेटिका हैं ।।13।।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

व्याख्या

        राधा जी पवन रूपी दूती से कहती है कि वह श्री कृष्ण का शरीर एक सांचे में डाला गया शरीर दिखाई देता है अर्थात् श्री कृष्ण का शरीर सुडौल है जिससे वह शरीर अलौकिक सुंदर वाला है। उस दिव्य शरीर से जो पुष्पों की सुगंधि निकल रही है वह प्राण को जीवित करने वाली है । श्रीकृष्ण के कंधे बैल के समान मजबूत और उस श्रीकृष्ण की भुजाएं तुम्हें हाथी के सूंड के समान शक्तिशाली दिखाई पड़ेंगी।

शेष व्याख्या अगले भाग में ….,……..

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