भोजस्यौदार्यम्
राजा भोज की उदारता –
ततः कदाचिद् द्वारपाल अगत्य महाराजं भोजं प्राह ‘देव, कौपीनेषशो विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति। राजा ‘प्रवेशय’ इति प्राह:। चेतः प्रविष्टः सः कविः भोजमालोक्य अद्य मे दारिद्र्यनाशो भविष्यतीति मत्वा तुष्टो हर्षाश्रुणि मुमोच। राजा तमालोक्य प्राह-‘कवे, किं दिशि’ इति। ततः कविराः- राजन ! आकर्णय मद्गृहस्थितिम् –
Class 12 Hindi
अये लज्जानुच्चैः पथि वचनमाकर्ण्य गृहिणी,
शिशुः कर्णों यत्नात् सुपहितवती दीनवदना।
मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले ,
तदन्तः शल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धर्तुमुचितः।।
शिवालयमभ्यगच्छत्। तदा कोपि ब्राह्मणःराजानां शिवसन्निधौ प्राह-देव!-
अर्धं दानववैरिणा गिरिजयाप्यर्द्ध शिवस्याहृतम्
देवेत्थं जगतीतले पुराभवे समुन्मीलति।।
गंगा सागरम्बरं शशिकला नागाधिपः क्ष्मातलम्
सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् त्वां मां तु भिक्षाटनम्।।
व्याख्या –
आधा भाग दानवों के शत्रु विष्णु ने और आधा भाग गिरिजा अर्थात माता पार्वती ने शंकर जी के शरीर को बांट लिया, जिससे पूरे देवलोक में पूरे संसार में शंकर जी का अभाव हो गया।
भावार्थ-
विरलविरलाः स्थूलंस्ताराः कलाविव सज्जनाः
मन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नमभूत्रभः।।
अपसरति च ध्वान्तं चित्तात्सतामिव दुर्जनः
व्रजति च निशा क्षिप्रं लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव।।
व्याख्या –
कवियत्री सीता ने बोला – आकाश में तारे दूर-दूर दिखाई देने लगे हैं जैसे कलयुग में सज्जन दूर-दूर दिखाई देते हैं, पूरे संसार में प्रसन्नता छाई हुई है पूरा संसार निर्मल हो गया है जैसे मुनियों का मन निर्मल और प्रसन्नचित रहता है। अंधकार इस तरह से सरक रहा है या दूर भाग रहा है जैसे सज्जनों के चित्त से दुर्जन दूर भाग जाते हैं, तेजी से रात भी जा रही है जैसे अनुद्यमियों के पास से लक्ष्मी चली जाती है।
ततः कालिदासः प्राह-
भावार्थ-
राजा कवियत्री सीता को प्रत्येक अक्षर के लिए एक लाख ₹100000 देता है और तब कालिदास से कहता है हे कवि! कालिदास तुम भी सुबह का वर्णन करो तब कालिदास सुबह का वर्णन करने के लिए खड़े होते हैं और कहते हैं-
भूत प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकं
गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।
क्षणं क्षीणास्तारा नृपतय इवानुद्यमपराः
न दीपा राजन्ते द्रविराहितानामिव गुणाः।।
व्याख्या –
कालिदास सुबह का वर्णन करते हुए कहते हैं कि- पूर्व दिशा पीली हो चुकी है और चंद्रमा भी स्वर्ण रंग को प्राप्त हो चुका है , चंद्रमा की छाया चली गई है जैसे गांव में विद्वान जन लोग समाप्त हो चुके हैं। तारे आकाश में छुप जा रहे हैं दिखाई नहीं पड़ रहे हैं प्रत्येक पल छीण होते जा रहे हैं जैसे अनुद्यमी राजा का राज्य नष्ट हो जाता है। और दीपक उसी प्रकार सुशोभित नहीं हो रहा है जैसे गुण से युक्त कोई व्यक्ति धन से हीन होने पर उस गुणी व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता।